तुम और हम

–राजगोपाल सिंह वर्मा 

१)
कुछ स्मरण है तुम्हें,
कब हुई,
पहली बार,
मुलाकात हमारी,
और,
तुमने बताये थे मुझे,
अपनी उन रातों के भी किस्से,
कुछ शरमाते,
कुछ लजाते हुये,
जब तुम सो नहीं पाती थी,
कल्पना करते हुये,
एक खूबसूरत सफ़र की,
बुने हुए कुछ उन अहसासों की
जहाँ सिर्फ हम हों,
और तन्हाई,
और कुछ सपने.

(2)
याद हैं वह दिन भी मुझे,
बहुत अच्छे से,
जब तुम छोड़ गई थी,
एक दिन,
अचानक यूँ ही,
लौट कर फिर से,
ना आने के लिये,
भुला दी थी सब यादें,
और मुलाकातें,
वह सफर,
स्वप्न ढेरों,
और,
भुला दिये वह,
रास्ते सारे!

(3)
प्रतीक्षारत हूँ यूँ तो मैं,
अब भी तुम्हारा,
कभी-कभी,
नैसर्गिक सा लगता है,
यूँ रूठ जाना भी तुम्हारा,
ना बंधन, ना रिश्ता कोई,
मुहब्बत की कोई,
मंजिल तो हो,
बंधन जो बने हैं,
उनसे जकड़ा हूँ मैं भी,
तुमको पा न सकूंगा,
जानता हूँ यह भी,
तुम्हारी तरह !

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